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"तुम्हारी ट्रेन चली जा रही है / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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और इस पूरे शर्मनाक दृश्य को
 
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अपने क्षोभ से भिंगोता हुआ
 
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यह रक्तिम हाथ हिला जा रहा है
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इधर तट पर नावें हैं
 
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किनारे से लगी हुयी
 
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इन्हें कहीं जाना भी है    पता नहीं
 
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पर तुम्हारी यह ट्रेन तो चली जा रही है
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ये रक्तिम हाथ उसे रोकने को नहीं उठे हैं
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वे बस हिल रहे हैं
 
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इस खुशी में कि
 
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तुमने इन हाथों का दर्द समझा
 
तुमने इन हाथों का दर्द समझा
 
और शर्म से लाल तो हुयी
 
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फिर तो फिराक को पढा ही है तुमने
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फिर फिराक को तो
हुआ है कौन किसी का उम्र भर फिर भी।
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पढा ही है तुमने
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'हुआ है कौन किसी का उम्र भर फिर भी...'।
 
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15:48, 20 अगस्त 2019 के समय का अवतरण

 देखो ना मित्र
तुम्हारी ट्रेन चली जा रही है
कोइलवर पुल पर
छुक छुक करती
और एक लडका
दूर इधर नदी के पार
हाथ हिला रहा है तुम्हें
दूर से तुम्हें वह लाल झंडे सा दिख रहा होगा
और तुम चिढ रही होगी
कि तुम्हारा यह प्यारा रंग उसने क्यों हथिया लिया है

पर उसने हथियाया नहीं है यह रंग
यही उसका असली रंग है
इस व्यवस्था की शर्म में डूबकर
लाल हुआ हाथ है वह
और इस पूरे शर्मनाक दृश्य को
अपने क्षोभ से भिंगोता हुआ
वह रक्तिम हाथ हिला जा रहा है

इधर तट पर नावें हैं
किनारे से लगी हुयी
इन्हें कहीं जाना भी है पता नहीं

पर तुम्हारी यह ट्रेन
तो चली जा रही है

ये रक्तिम हाथ
उसे रोकने को नहीं उठे हैं
वे बस हिल रहे हैं
इस खुशी में कि
तुमने इन हाथों का दर्द समझा
और शर्म से लाल तो हुयी
फिर फिराक को तो
पढा ही है तुमने
'हुआ है कौन किसी का उम्र भर फिर भी...'।