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तुम्हारे ख़्वाब ने / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

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एक उम्र से तुम नींद ‘ड्राईव’ करती हो
न कोई ख़्वाब का पहिया कभी ख़राब हुआ
न नींद तुमसे कभी बेइख़्तियार हुई
मगर ये क्या कि मैंने आज सुना
तुम्हारे ख़्वाब ने एक शख़्स को कुचल डाला
जैसे ‘मेट्रो’ के नीचे एक जान जली थी
उसे पता था कि माँ बहुत अकेली है
उसे ख़बर थी कि बाप को बीमारी है
उसे मालूम था कि भाई अभी छोटा है
वो जानता था कि शादी बहन की बाक़ी है
बताए कौन कि वफ़ात की वजह क्या थी
कहीं पढ़ा था मगर
तुम्हारी ख़ातिर उसने ख़ुदकुशी की है
तुम्हारे ख़्वाब ने एक शख़्स को कुचल डाला