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तुम्हारे देश का मातम / शैलजा सक्सेना

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तुम्हारे देश का मातम*
रात
सात समंदर पार कर
मेरे सिरहाने आ खड़ा हुआ ।
लान की घास पर ओस से दिखायी दिये
उन माँओं के आँसू
जिनके बच्चे कभी फूल से
खिलते थे !!

पेडों की सूनी शाखों पर
माँ के दूध जलने की गंध
लटकी है आज !!

सामूहिक दफन कैसे करते हैं
टी.वी. दिखाता है
बच्चों के माता-पिता का
इंटर्व्यू करवाता है
“ आपके बच्चे के मरने की खबर आई तो
कैसा लगा आपको?
बच्चा कैसा था,
शैतान या समझदार?”
भावनाएँ इश्तहार हैं
व्यापारी उन्हें बेचता है
समझदार बच्चे के मरने पर
रोने में भारी छूट!!!!
दर्शकों की आँखों में जितने अधिक आँसू
टी.वी चैनल की उतनी ही सफलता !

नेता बदल देता है उन्हें नारों में
फिर वोटों में…
फिर अर्थियों में !!
देश फिर उलझ गया...............

अपराधी हत्यारा
मुस्कुराता है!!!!
……
असमय मरे बच्चों को मैं
बुलाती हूँ....
सुनो, जाओ नहीं अभी
जन्नत को देखने दो अपना रास्ता कुछ देर
पहले इस सामूहिक षड़्यंत्र को तोड़ो
छोडो मत अपने अपराधियों को !
तुम, भविष्य थे हमारा
अब भूत बन कर ही सही
वर्तमान को सँभालो ।
तुम में अब समा गई है
माँ के आँसुओं की शक्ति,
पिता के टूटे कंधों का बल,
समेट कर अपने को
लड़ो  !!
लड़ो, कि अब तुम छोटे नहीं रहे !!
मर कर खो चुके हो अपनी उम्र....
बड़े बन कर वो बचा लो
जो दुनिया भर के बड़े नहीं बचा पाए,
उम्मीद की लौ जैसे अपने बाकी भाई बहनों को
बचा लो !!
लड़ो !
लड़ो,
कि फिर यह घटना
कहीं दोहरायी न जाए !!

-०-

  • (130 बच्चों के मरने पर)