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तुम्हें रिझाऊँ मैं / प्रेमलता त्रिपाठी

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अध जल गगरी छलके प्रीतम, भरी उठाऊँ मैं।
खड़ी बावरी यौवन पथ पर, तुम्हें रिझाऊँ मैं।

प्रीति सयानी है अनबोली, छलके बन पावस,
बदरी सावन भादों बन के, जल बरसाऊँ मैं।

राह तकें हैं कुशल चितेरे, पढ़ते नयना जो,
ओढ़ हया को पलकों में अब, उसे छुपाऊँ मैं।

भूला बचपन झूले सावन, बातें सखियों की,
हँसी ठिठोली रूठी कैसे, मन बहलाऊँ मैं।

वैभव प्रीत तुम्हारा पाऊँ, मेघ मल्हार से,
तीज सावनी गीत सुनाकर, तुम्हें बुलाऊँ मैं।

प्रेम अलौकिक भरूँ हृदय में, महक उठे तनमन,
व्यथा स्वार्थ मय जग की प्रभु जी, तुम्हें सुनाऊँ मैं।