"तुम आज ही लौट आओ/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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+ | उन्स करती हैं… | ||
− | कहाँ | + | कहाँ है वो तेरे माथे की छोटी-सी बिंदिया |
− | छोटी- | + | जिसका गहरा रंग तेरे हुस्न में चार चाँद लगाता है |
− | कहाँ हैं वो | + | कहाँ हैं वो आँखें झील-सी गहरी आँखें |
− | + | जिनकी खा़हिश में हर रात खा़बीदा हुआ करती है | |
− | कहाँ हैं वो | + | कहाँ हैं वो लब जो तितलियों के परों से नाज़ुक़ हैं |
− | + | छोटी-छोटी बात पे खिलते हैं | |
− | कहाँ हैं वो | + | कहाँ हैं वो गुलाबी रोशनाइयाँ |
− | + | जिनसे सुबह होती है, कलियाँ चटकती हैं’ महकती हैं | |
− | कहाँ हैं | + | कहाँ हैं वो हाथ, मरमरीं हाथ |
− | मेरे | + | जिन्हें मेरे हाथों में होना चाहिए |
− | + | कहाँ हैं वो पाँव, हसीन पाँव | |
− | + | जिन्हें मेरे घर की फ़र्श पर होना चाहिए | |
− | गर जो तुमसे मुनासिब हो | + | कहाँ हैं तू, आज तू कहाँ है? |
− | तुम आज ही लौट आओ | + | मेरे जिस्मो-ज़हन के सिवा तू कहीं दिखती ही नहीं |
− | कि शायद ‘विनय’ क़यामत की दहलीज़ पर है< | + | खा़मोश ये लब आज भी बेक़रार हैं |
+ | तुमसे कुछ कहने के लिए… | ||
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+ | गर जो तुमसे मुनासिब हो | ||
+ | तुम आज ही लौट आओ | ||
+ | कि शायद ‘विनय’ क़यामत की दहलीज़ पर है | ||
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06:36, 29 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
लेखन वर्ष: १३/अप्रैल/२००३
कहाँ है वो चेहरा, गुलाबी चेहरा
जिसको देखकर चाँद भी रश्क़ करता है
कहाँ हैं वो ज़ुल्फों की लटें
जो तेरे माथे पे सबा के साथ मचलती हैं
उन्स करती हैं…
कहाँ है वो तेरे माथे की छोटी-सी बिंदिया
जिसका गहरा रंग तेरे हुस्न में चार चाँद लगाता है
कहाँ हैं वो आँखें झील-सी गहरी आँखें
जिनकी खा़हिश में हर रात खा़बीदा हुआ करती है
कहाँ हैं वो लब जो तितलियों के परों से नाज़ुक़ हैं
छोटी-छोटी बात पे खिलते हैं
कहाँ हैं वो गुलाबी रोशनाइयाँ
जिनसे सुबह होती है, कलियाँ चटकती हैं’ महकती हैं
कहाँ हैं वो हाथ, मरमरीं हाथ
जिन्हें मेरे हाथों में होना चाहिए
कहाँ हैं वो पाँव, हसीन पाँव
जिन्हें मेरे घर की फ़र्श पर होना चाहिए
कहाँ हैं तू, आज तू कहाँ है?
मेरे जिस्मो-ज़हन के सिवा तू कहीं दिखती ही नहीं
खा़मोश ये लब आज भी बेक़रार हैं
तुमसे कुछ कहने के लिए…
गर जो तुमसे मुनासिब हो
तुम आज ही लौट आओ
कि शायद ‘विनय’ क़यामत की दहलीज़ पर है