भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम और तुम्हारे कैडर-1 / जय गोस्वामी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 2 जनवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोटर साइकिल पर सवार
घुस पड़ते हैं
जत्थे के जत्थे! झुंड के झुंड!
कौन घुस पड़ते हैं?
सुबह-सुबह कौन घुस पड़ते हैं?

--कुछ पता नहीं चलता!
लेकिन उसके बाद,
गाँव-गाँव, घर-घर !

अबोध-मासूम किसान का झरता है ख़ून,
जाग्रत किसान का झरता है ख़ून!

बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता