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तुम और मैं / कविता भट्ट

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निःसंग किंतु निरंतर गति मैं,
तुम प्रखर प्रतिछाया का प्रतिभास लिये।
मैं निष्पाप ,निश्छल निमित्त निबंधन,
तुम प्रकृष्ट प्रयोजन के प्रत्याश लिये।
लतिका धरणीतल से उगती मैं,
तुम प्लक्ष (वृक्ष) तरुवर के प्रबल प्रसार लिये।
मैं मूक मंत्र मानसिक जप में,
तुम उच्चारित प्रार्थनाओं का प्रसाद लिये ।