भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम कौन थे भगत सिंह / राजीव रंजन प्रसाद

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:02, 30 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: '''तुम कौन थे भगतसिंह?'''<br /> मकडियों नें हर कोने को सिल दिया है<br /> उलटे ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम कौन थे भगतसिंह?

मकडियों नें हर कोने को सिल दिया है
उलटे लटके चमगादड
देख रहें हैं
कैसे सिर के बल चलता आदमी
भूल गया है अपनी ज़मीन
दीवारों पर की सीलन का
फफूंद की आबादी को
दावत पर आमंत्रण है
दरवाज़ों पर दीमक की फौज़
फहराती है आज़ादी का परचम
दाहिने-बांयें थम...

मैडम का जनमदिन है
जनपथों के ट्रैफिक जाम है
साहब का मरणदिन है
रेलडिब्बे के ट्वायलेट तक में लेट कर
आदमी की खाल पहने सूअर
बढे आते हैं रैली को
थैली भर राशन उठायें
कि दिहाडी भी है, मुफ्त की गाडी भी है
देसी और ताडी भी है..

और तुम भगतसिंह?
पागल कहीं के
इस अह्सान फरामोश देश के लिये
"आत्म हत्या” कर ली?
अंग्रेजी जोंक जब यह देश छोड कर गयी
तो कफन खसोंट काबिज हो गये
अब तो कुछ मौतें सरकारी पर्व हैं
जिनके बेटों पोतों को विरासत में कुर्सियाँ मिली हैं
निपूते तुम! किसको क्या दे सके?
फाँसी पर लटक कर जिस जड को उखाडने का
दिवा-स्पप्न था तुम्हारा
वह अमरबेल हो गयी है

आज 23 मार्च है...
आज किसी बाग में फूल नहीं खिलते
कि एक सरकारी माला गुंथ सके
मीडिया को आज भी
किसी बलात्कार का
लाईव और एक्सक्लूसिव
खुलासा करना है
सारे संतरी मंत्री की ड्यूटी पर हैं
और सारे मंत्री उसी भवन में इकट्ठे
जूतमपैजार में व्यस्त हैं
जिसके भीतर बम पटक कर तुम
बहरों को सुनाना चाहते थे...
बहरे अब अंधे भी हैं

तुम इस राष्ट्र के पिता-भ्राता या सुत
कुछ भी तो नहीं
तुम इस अभागे देश के कौन थे भगतसिंह?