भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम (हाइकु) / अशोक कुमार शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
पिघला तन
 
पिघला तन
 
(3)
 
(3)
 +
तेरी आहट
 +
गुनगुनी धूप सी
 +
माह पूस की
 
</poem>
 
</poem>

22:46, 9 सितम्बर 2014 का अवतरण

 (1)
तुम आये तो
महकी फुलवारी
मायूसी हारी
(2)
हरारत है
आलिंगन तुम्हारा
पिघला तन
(3)
तेरी आहट
गुनगुनी धूप सी
माह पूस की