भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुलसीदल / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:51, 18 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक तरफ जगत की सम्पति
और जगदीश स्वयं
दूसरी तरफ़ केवल तुलसी की एक पत्ती,
तुम्हारा नाम
वही तुलसीदल है,
मैं अपने पलड़े में जो भी रख सकता था
रखकर देख लिया
जैसे ही तुम्हारा नाम आता है
तृण हो जाता है
ये जगत
और मेरा
मैं !