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तूने अच्छे खेल खिलाये! / गुलाब खंडेलवाल

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तूने अच्छे खेल खिलाये!
खेल तुझे हो, हमने तो इसमें दुख-ही-दुख पाये
 
जब भी हमने राग मिलाया
जुड़ा मंडली, सुर में गाया
क्रूर काल ने फण फैलाया
सारे ठाठ उड़ाए
 
जाने कैसी आतुरता थी
उठ-उठ गए बीच से साथी
सब सपने की-सी माया थी
हम जिस पर इतराये
 
सुख पाता तू हमें सताके
या कि सो गया सृष्टि रचाके
कुछ तो बता--'बंधु वे बाँके
गए कहाँ, क्यों आये'

तूने अच्छे खेल खिलाये!
खेल तुझे हो, हमने तो इसमें दुख-ही-दुख पाये