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"तू ही नहीं अधीर / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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पद गाये कबीर ने झीने
 
पद गाये कबीर ने झीने
गीत बंग कवि रसभीने ने
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गीत बंग-कवि ने रसभीने 
 
मीरा सूर और तुलसी ने  
 
मीरा सूर और तुलसी ने  
 
हृदय रख दिया चीर
 
हृदय रख दिया चीर
 
 
 
 
 
पर उनमें था श्रद्धा का बल
 
पर उनमें था श्रद्धा का बल
लक्ष्य नहीं होता  था ओझल
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लक्ष्य नहीं होता था ओझल
 
तू शंका, दुविधा में प्रतिपल
 
तू शंका, दुविधा में प्रतिपल
 
कैसे पाये तीर!
 
कैसे पाये तीर!

01:42, 20 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर
 
पद गाये कबीर ने झीने
गीत बंग-कवि ने रसभीने 
मीरा सूर और तुलसी ने
हृदय रख दिया चीर
 
पर उनमें था श्रद्धा का बल
लक्ष्य नहीं होता था ओझल
तू शंका, दुविधा में प्रतिपल
कैसे पाये तीर!
 
जब तू चन्दन बन जायेगा
अपने को घिसकर लायेगा
तभी विश्व यह दुहरायेगा
तिलक करें रघुवीर

तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर