भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा दर छोड़के जाने का कभी नाम न लूँ / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:33, 10 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तेरा दर छोड़के जाने का कभी नाम न लूँ
यों पिला दे कि कहीं और सुबह-शाम न लूँ

मुझको नस-नस के चटकने का हो रहा है गुमान
हुक्म तेरा है कि दम भर कहीं आराम न लूँ

यों न लहरा दे मेरे सामने आँचल अपना
मैं हूँ मदहोश, कहीं बढ़के इसे थाम न लूँ!

तू मेरे प्यार की धड़कन तो समझता है ज़रूर
मैं भले ही कभी होँठों से तेरा नाम न लूँ

यह तो बतला कि खिलाये हैं भला क्यों ये गुलाब
है अगर ज़िद ये तेरी, इनसे कोई काम न लूँ !