भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी मर्ज़ी / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem> गले से आज लगा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गले से आज लगाया है तेरी याद ने मुझको
सन्नाटों की चीख से भर गया है कमरा
बिखर गई है मेरी नींद यूँ कतरा-कतरा
मैं चुन रहा हूँ नींद के टुकड़ों को अभी
अपने खून से चिपकाऊँगा फिर पलकों पर
ताकि तुम आ सकोगी फिर से मेरी आँखों में
तुम्हारा लम्स महकता है मेरी साँसों में
मेरी रूह पर अब भी है उंगलियों के निशान
कि तेरी याद में मैनें सजा रखी है दुकान
आओ मुझे खरीद लो फिर जो तेरी मर्ज़ी