भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोड़े नयी जमीन/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:52, 26 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान }} {{KKCatNavgeet}} <poem> '''तोड़े न…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोड़े नयी जमीन

आओ हम सब मिल आपस में
एक करें यह काम,
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम
तोड़े नयी जमीन न ऊसर
बंजर एक बचे,
प्रगति बधू अपने हाथों में
मेंहदी रोज रचे,
कर्मयज्ञ के हवन कुंड़ में
आहुति दे अविराम।
तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर
सबकी प्यास हरें।
द्वेष, धृणा,कुंठा ,पीड़ा, का
दिन दिन हृास करें।
धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी
सबको कर अभिराम।
जोड़े सकल समाज हृदय में
सबके प्रेम जगे,
कोमल दूब उगे,
दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर
अपनी कसें लगाम।
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम।।