भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोप / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:10, 5 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=इसी दुनिया में / वीरेन डंगवाल }} क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कम्पनी बाग़ के मुहाने पर

धर रखी गई है यह 1857 की तोप

इसकी होती है बड़ी सम्हाल

विरासत में मिले

कम्पनी बाग की तरह

साल में चमकायी जाती है दो बार


सुबह-शाम कम्पनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी

उन्हें बताती है यह तोप

कि मैं बड़ी जबर

उड़ा दिये थे मैंने

अच्छे-अच्छे सूरमाओं के छज्जे

अपने ज़माने में


अब तो बहरहाल

छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो

तो उसके ऊपर बैठकर

चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप

कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं

ख़ासकर गौरैयें


वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप

एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द !