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तो म्हैं लिखूंला / नीरज दइया

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देवता घट मांय आया
फरमायो चूक बाबत
हळबळो मचग्यो
हाथो-हाथ राजी कर्‌या।

ओळै-दोळै रैवतां थकां ई
आपां सूं अदीठ रैवै
देवी-देवता अर पितरजी
हरफ बारां फिरै उभराणां
जे नीं देवां आपां बां नै-
आपां रा सबद!

म्हारै होठां लारै हरफ
म्हारी मरजी मुजब है
म्हनै ना बांधो किणी आस सूं
आस तूट्यां घट मांय आवैला देवता
अर म्हैं लिखूंला-
एक कविता
अफंड सारू।