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सारे देखेंगे अपना ही  चेहरा
 
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क्या पता कब, कहाँ से मारेगी
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बस कि मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ
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मौत का क्या है, एक बार मारेगी
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उठते हुए जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा
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देर तक हाथ हिलाती रही वो शाख़ फ़िज़ा में
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अलविदा कहने को, या पास बुलाने के लिए?
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15:18, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

आओ, सारे पहन लें आईने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा

रूह ? अपनी भी किसने देखी है!


क्या पता कब, कहाँ से मारेगी
बस कि मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ

मौत का क्या है, एक बार मारेगी

 
उठते हुए जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा
देर तक हाथ हिलाती रही वो शाख़ फ़िज़ा में

अलविदा कहने को, या पास बुलाने के लिए?