भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थारी आफळ / नंद भारद्वाज

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 27 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंद भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गैरै झांझरकै
खुल जावै थारी आंख
आपूं-आप
घट्टी रै घुरीजतै सुर में
सांभ लेवै ग्वाड़ी रौ परभात
भोळावण परबारी !

थारै हरण सूं जगायां
जागै आंगणौ
इंछा सूं अंगेजै चूल्हौ आग
थारै हेज नै पिछांणै
अंतस में इमरत धारयां सांजणी!

थूं पोखै उण कामधेन रा
बाछड़ां री आस
थारी आफळ रै आपांण
हुलसै पालणै में किलकारी!