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थार: 2 / मीठेश निर्मोही

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धरती-आभै
जितरी लांठी
थारी
कद काठी।

बावळ सरीसौ
थारौ
सांस।

समदर नै उनमांन
पसराव।

नीं थाकै
नीं हारै
थूं।

वाह रे
थळवट रा उमराव!