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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल ग़ज़ल / विजय वाते
}}
<poem>
पल पल देख निरंतर देख,
थोडा मन के अंदर देख |
कैसे खेल दिखाता है,
आदमजात कलंदर देख |
इंद्र सभा मे कैद क़ैद हुआ,स्वर्ग का राजा इन्दर देख |
अंदर से सारे प्यासे,
नदियाँ और समंदर देख |
वो भी कितना तनहा है,
दुनियां दुनिया जीत सिकंदर देख|</poem>
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