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दफ़्न जब ख़ाक़ में हम सोख़्ता-सामाँ होंगे / मोमिन

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नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे|
नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे|

ताब-ए-नज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ,
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैरां होंगे|

तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले,
हम तो कल ख़्वाब-ए-आदम में शब-ए-हिजराँ होंगे|

फिर बहार आई वही दश्त-ए-नावर्दी होगी,
फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे|

नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने के हम,
लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे|

एक हम हैं के हुये ऐसे पशेमाँ के बस,
एक वो हैं के जिंहें चाह के अर्माँ होंगे|

मिन्नत-ए-हज़रत-ए-इसा न उठायेँगे कभी,
ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे|

उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन",
अब आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमा होंगे|