भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दरवाजे खोल रहे बौने / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान |संग्रह=उगे मणिद्वी…) |
Sheelendra (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
− | <poem> | + | <poem> |
− | + | ||
− | + | ||
बन्दर के हाथों में | बन्दर के हाथों में | ||
काँच के खिलौने | काँच के खिलौने | ||
− | + | क़िस्मत के दरवाज़े | |
खोल रहे बौने | खोल रहे बौने | ||
− | + | ||
− | शतरंजी | + | काग़ज़ ने फैलाई |
+ | शतरंजी साज़िश | ||
बारूदी ढेरों पर | बारूदी ढेरों पर | ||
− | + | सुलगाई माचिस | |
− | सतरंगी सपने हैं | + | |
− | टाट | + | सतरंगी सपने हैं |
+ | टाट के बिछौने | ||
+ | |||
शहरों के जंगल का | शहरों के जंगल का | ||
निष्प्रभ है सूरज | निष्प्रभ है सूरज | ||
− | + | सडकों पर घूम रहा | |
बौराया धीरज | बौराया धीरज | ||
+ | |||
मुखिया की चौखट के | मुखिया की चौखट के | ||
आचरण घिनौने | आचरण घिनौने | ||
+ | |||
मौसम के चेहरे पर | मौसम के चेहरे पर | ||
− | ठुकी | + | ठुकी हुई कीलें |
− | वासन्ती | + | वासन्ती झोकों पर |
मँडराती चीलें | मँडराती चीलें | ||
+ | |||
व्याकुल हैं आँचल के | व्याकुल हैं आँचल के | ||
− | + | दुधमुँहे दिठौने | |
+ | |||
बन्दर के हाथों में | बन्दर के हाथों में | ||
काँच के खिलौने | काँच के खिलौने | ||
</poem> | </poem> |
21:42, 5 मार्च 2012 के समय का अवतरण
बन्दर के हाथों में
काँच के खिलौने
क़िस्मत के दरवाज़े
खोल रहे बौने
काग़ज़ ने फैलाई
शतरंजी साज़िश
बारूदी ढेरों पर
सुलगाई माचिस
सतरंगी सपने हैं
टाट के बिछौने
शहरों के जंगल का
निष्प्रभ है सूरज
सडकों पर घूम रहा
बौराया धीरज
मुखिया की चौखट के
आचरण घिनौने
मौसम के चेहरे पर
ठुकी हुई कीलें
वासन्ती झोकों पर
मँडराती चीलें
व्याकुल हैं आँचल के
दुधमुँहे दिठौने
बन्दर के हाथों में
काँच के खिलौने