भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरिया बहाके बोल कि चिड़िया उड़ाके बोल / विनय कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरिया बहाके बोल कि चिड़िया उड़ाके बोल।

पोशीदा पहाडों को निशाना बनाके बोल।

यह देख कि सुनता है कि सुनता भी नहीं है गर्दन उठाके बोल , निगाहें मिलाके बोल।

हिम्मत तुम्हारी सो गई मर तो नहीं गई झकझोर ज़रा ज़ोर से, उसको जगाके बोल।

दिखता है तरफ़दार मगर है कि नहीं है उसको अज़ीज़ बोल मगर आज़माके बोल।

चिकना सा अंधेरा है मगर है तो अंधेरा रूखड़ा है दिया लाख, दिए को जलाके बोल।

बेचारा दिखोगे अगर, चारा न मिलेगा रातों में चीख, दिन में दुलत्ती लगाके बोल।

दस्तक नवाज़ घर न मिलेंगे तुम्हें कहीं घंटी अगर नहीं हो तो सांकल बजाके बोल।

खतरा न बोलने में बोलने से अधिक है बातों को चबाती हुई चुप्पी चबाके बोल।