भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द दिल के करीब आते हैं / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 3 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रजन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द दिल के करीब आते हैं ।
अश्क आंखों में झिलमिलाते हैं।।

रात काली लगी सिसकने क्यों
नभ में तारे तो जगमगाते हैं।।

आंधियों के खिलाफ चलते हो
यों तो दीपक नहीं जलाते हैं।।

मुश्किलों में सँभालते खुद को
वीर उन को ही तो बताते हैं।।

जिस तरह बुलबुला हो पानी का
प्राण ऐसे ही जग से जाते हैं।।

एक कागज की नाव हो जैसे
वक्त के साथ बहते जाते हैं।।

है चमत्कार भी जरूरी कुछ
स्वप्न को सत्य जो बनाते हैं।।