दशम प्रकरण / श्लोक 1-8 / मृदुल कीर्ति
सब अनर्थों का मूल कारण, अर्थ है और काम है,
इनकी उपेक्षा मूल धर्म है, कर्म में निष्काम है.------१
धन, मित्र, क्षेत्र , निकेत, स्त्री, बंधु स्वप्न समान हैं,
इन्द्र जाल समान, पाँच या तीन दिन के विधान हैं.-----२
जिस वस्तु में इच्छा बसे , समझो वहां संसार है,
वैराग्य भाव प्रधान चित्त से,जान सब निःसार है.------३
संसार तृष्णा रूप है,तृष्णा जहों संसार है,
वैराग्य आश्रय हो मना, तृष्णा रहित सुख सार है.-----४
यह अविद्या भी असत और असत जड़ संसार है,
चैतन्य रूप विशुद्ध, तुझको तो जगत निःसार है.-----५
देह, नारी, राज्य, सुत आसक्त जन के सुख सभी,
हर जनम में मरण धर्मा, नष्ट ये होंगे सभी.-----६
धर्म, अर्थ, और काम हित, बहु कर्म तो कितने किए,
जगत रुपी वन में तो भी, शान्ति हित भटके हिये.-----७
देह, मन, वाणी से श्रम, दुःख पूर्ण बहु तूने किए,
उपराम कर अब तो तनिक, विश्रांति चित हिय में किए.-----८