भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दशरथ विलाप / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>कहाँ हौ ऐ हमारे राम प्यारे। किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे॥ बुढ़…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>कहाँ हौ ऐ हमारे राम प्यारे। किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे॥
+
{{KKGlobal}}
बुढ़ापे में ये दु:ख भी देखना था। इसी के देखने को मैं बचा था॥
+
{{KKRachna
छिपाई है कहाँ सुन्दर वो मूरत। दिखा दो साँवली-सी मुझको सूरत॥
+
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
छिपे हो कौन-से परदे में बेटा। निकल आवो कि अब मरता हु बुड्ढा॥
+
}}
बुढ़ापे पर दया जो मेरे करते। तो बन की ओर क्यों तुम पर धरते॥
+
{{KKCatKavita‎}}
किधर वह बन है जिसमें राम प्यारा। अजुध्या छोड़कर सूना सिधारा॥
+
<poem>
गई संग में जनक की जो लली है। इसी में मुझको और बेकली है॥
+
कहाँ हौ ऐ हमारे राम प्यारे ।
कहेंगे क्या जनक यह हाल सुनकर। कहाँ सीता कहाँ वह बन भयंकर॥
+
किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे ।।
गया लछमन भी उसके साथ-ही-साथ। तड़पता रह गया मैं मलते ही हाथ॥
+
मेरी आँखों की पुतली कहाँ है। बुढ़ापे की मेरी लकड़ी कहाँ है॥
+
कहाँ ढूँढ़ौं मुझे कोई बता दो। मेरे बच्चो को बस मुझसे मिला दो॥
+
लगी है आग छाती में हमारे। बुझाओ कोई उनका हाल कह के॥
+
मुझे सूना दिखाता है ज़माना। कहीं भी अब नहीं मेरा ठिकाना॥
+
अँधेरा हो गया घर हाय मेरा। हुआ क्या मेरे हाथों का खिलौना॥
+
मेरा धन लूटकर के कौन भागा। भरे घर को मेरे किसने उजाड़ा॥
+
हमारा बोलता तोता कहाँ है। अरे वह राम-सा बेटा कहाँ है॥
+
कमर टूटी, न बस अब उठ सकेंगे। अरे बिन राम के रो-रो मरेंगे॥
+
कोई कुछ हाल तो आकर के कहता। है किस बन में मेरा प्यारा कलेजा॥
+
हवा और धूप में कुम्हका के थककर। कहीं साये में बैठे होंगे रघुवर॥
+
जो डरती देखकर मट्टी का चीता। वो वन-वन फिर रही है आज सीता॥
+
कभी उतरी न सेजों से जमीं पर। वो फिरती है पियोदे आज दर-दर॥
+
न निकली जान अब तक बेहया हूँ। भला मैं राम-बिन क्यों जी रहा हूँ॥
+
मेरा है वज्र का लोगो कलेजा। कि इस दु:ख पर नहीं अब भी य फटता॥
+
मेरे जीने का दिन बस हाय बीता। कहाँ हैं राम लछमन और सीता॥
+
कहीं मुखड़ा तो दिखला जायँ प्यारे। न रह जाये हविस जी में हमारे॥
+
कहाँ हो राम मेरे राम-ए-राम। मेरे प्यारे मेरे बच्चे मेरे श्याम॥
+
मेरे जीवन मेरे सरबस मेरे प्रान। हुए क्या हाय मेरे राम भगवान॥
+
कहाँ हो राम हा प्रानों के प्यारे। यह कह दशरथ जी सुरपुर सिधारे।
+
  
 +
बुढ़ापे में ये दु:ख भी देखना था।
 +
इसी के देखने को मैं बचा था ।।
 +
 +
छिपाई है कहाँ सुन्दर वो मूरत ।
 +
दिखा दो साँवली-सी मुझको सूरत ।।
 +
 +
छिपे हो कौन-से परदे में बेटा ।
 +
निकल आवो कि अब मरता हु बुड्ढा ।।
 +
 +
बुढ़ापे पर दया जो मेरे करते ।
 +
तो बन की ओर क्यों तुम पर धरते ।।
 +
 +
किधर वह बन है जिसमें राम प्यारा ।
 +
अजुध्या छोड़कर सूना सिधारा ।।
 +
 +
गई संग में जनक की जो लली है 
 +
इसी में मुझको और बेकली है ।।
 +
 +
कहेंगे क्या जनक यह हाल सुनकर ।
 +
कहाँ सीता कहाँ वह बन भयंकर ।।
 +
 +
गया लछमन भी उसके साथ-ही-साथ ।
 +
तड़पता रह गया मैं मलते ही हाथ ।।
 +
 +
मेरी आँखों की पुतली कहाँ है । 
 +
बुढ़ापे की मेरी लकड़ी कहाँ है ।।
 +
 +
कहाँ ढूँढ़ौं मुझे कोई बता दो ।
 +
मेरे बच्चो को बस मुझसे मिला दो ।।
 +
 +
लगी है आग छाती में हमारे।
 +
बुझाओ कोई उनका हाल कह के ।।
 +
 +
मुझे सूना दिखाता है ज़माना ।
 +
कहीं भी अब नहीं मेरा ठिकाना ।।
 +
 +
अँधेरा हो गया घर हाय मेरा ।
 +
हुआ क्या मेरे हाथों का खिलौना ।।
 +
 +
मेरा धन लूटकर के कौन भागा ।
 +
भरे घर को मेरे किसने उजाड़ा ।।
 +
 +
हमारा बोलता तोता कहाँ है ।
 +
अरे वह राम-सा बेटा कहाँ है ।।
 +
 +
कमर टूटी, न बस अब उठ सकेंगे ।
 +
अरे बिन राम के रो-रो मरेंगे ।।
 +
 +
कोई कुछ हाल तो आकर के कहता ।
 +
है किस बन में मेरा प्यारा कलेजा ।।
 +
 +
हवा और धूप में कुम्हका के थककर ।
 +
कहीं साये में बैठे होंगे रघुवर ।।
 +
 +
जो डरती देखकर मट्टी का चीता ।
 +
वो वन-वन फिर रही है आज सीता ।।
 +
 +
कभी उतरी न सेजों से जमीं पर ।
 +
वो फिरती है पियोदे आज दर-दर ।।
 +
 +
न निकली जान अब तक बेहया हूँ ।
 +
भला मैं राम-बिन क्यों जी रहा हूँ ।।
 +
 +
मेरा है वज्र का लोगो कलेजा ।
 +
कि इस दु:ख पर नहीं अब भी य फटता ।।
 +
 +
मेरे जीने का दिन बस हाय बीता ।
 +
कहाँ हैं राम लछमन और सीता ।।
 +
 +
कहीं मुखड़ा तो दिखला जायँ प्यारे ।
 +
न रह जाये हविस जी में हमारे ।।
 +
 +
कहाँ हो राम मेरे राम-ए-राम ।
 +
मेरे प्यारे मेरे बच्चे मेरे श्याम ।।
 +
 +
मेरे जीवन मेरे सरबस मेरे प्रान ।
 +
हुए क्या हाय मेरे राम भगवान ।।
 +
 +
कहाँ हो राम हा प्रानों के प्यारे ।
 +
यह कह दशरथ जी सुरपुर सिधारे ।।
 
</poem>
 
</poem>

12:08, 18 मार्च 2011 का अवतरण

कहाँ हौ ऐ हमारे राम प्यारे ।
किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे ।।

बुढ़ापे में ये दु:ख भी देखना था।
इसी के देखने को मैं बचा था ।।

छिपाई है कहाँ सुन्दर वो मूरत ।
दिखा दो साँवली-सी मुझको सूरत ।।

छिपे हो कौन-से परदे में बेटा ।
निकल आवो कि अब मरता हु बुड्ढा ।।

बुढ़ापे पर दया जो मेरे करते ।
तो बन की ओर क्यों तुम पर धरते ।।

किधर वह बन है जिसमें राम प्यारा ।
अजुध्या छोड़कर सूना सिधारा ।।

गई संग में जनक की जो लली है
इसी में मुझको और बेकली है ।।

कहेंगे क्या जनक यह हाल सुनकर ।
कहाँ सीता कहाँ वह बन भयंकर ।।

गया लछमन भी उसके साथ-ही-साथ ।
तड़पता रह गया मैं मलते ही हाथ ।।

मेरी आँखों की पुतली कहाँ है ।
बुढ़ापे की मेरी लकड़ी कहाँ है ।।

कहाँ ढूँढ़ौं मुझे कोई बता दो ।
मेरे बच्चो को बस मुझसे मिला दो ।।

लगी है आग छाती में हमारे।
बुझाओ कोई उनका हाल कह के ।।

मुझे सूना दिखाता है ज़माना ।
कहीं भी अब नहीं मेरा ठिकाना ।।

अँधेरा हो गया घर हाय मेरा ।
हुआ क्या मेरे हाथों का खिलौना ।।

मेरा धन लूटकर के कौन भागा ।
भरे घर को मेरे किसने उजाड़ा ।।

हमारा बोलता तोता कहाँ है ।
अरे वह राम-सा बेटा कहाँ है ।।

कमर टूटी, न बस अब उठ सकेंगे ।
अरे बिन राम के रो-रो मरेंगे ।।

कोई कुछ हाल तो आकर के कहता ।
है किस बन में मेरा प्यारा कलेजा ।।

हवा और धूप में कुम्हका के थककर ।
कहीं साये में बैठे होंगे रघुवर ।।

जो डरती देखकर मट्टी का चीता ।
वो वन-वन फिर रही है आज सीता ।।

कभी उतरी न सेजों से जमीं पर ।
वो फिरती है पियोदे आज दर-दर ।।

न निकली जान अब तक बेहया हूँ ।
भला मैं राम-बिन क्यों जी रहा हूँ ।।

मेरा है वज्र का लोगो कलेजा ।
कि इस दु:ख पर नहीं अब भी य फटता ।।

मेरे जीने का दिन बस हाय बीता ।
कहाँ हैं राम लछमन और सीता ।।

कहीं मुखड़ा तो दिखला जायँ प्यारे ।
न रह जाये हविस जी में हमारे ।।

कहाँ हो राम मेरे राम-ए-राम ।
मेरे प्यारे मेरे बच्चे मेरे श्याम ।।

मेरे जीवन मेरे सरबस मेरे प्रान ।
हुए क्या हाय मेरे राम भगवान ।।

कहाँ हो राम हा प्रानों के प्यारे ।
यह कह दशरथ जी सुरपुर सिधारे ।।