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"[[दस दोहे (21-30) / चंद्रसिंह बिरकाली]]" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))
[[Category: दोहा]]
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सिर पर घुमे सांकडी, कर-कर नवलो बेस ।
सौत सिखाई वादळी इण में लाव ना लैस ।।21।।
नए-नए वेष धर तू समीप ही सिर पर घूम रही है । बादली, तुम्हें सौत ने सिखा कर भेजा है, इसमें जरा भी संशय नही है ।
सिर पर घुमे सांकडीछोड़ मरोड़, कर-कर नवलो बेस।छिपा मती धण रो देख हवाल ।सौत सिखाई वादळी इण में लाव ना लैस।। 21।।बता बता ऐ बादली साजन रा सै हाल ।।22।।
नये-नये वेष धर तू समीप ही सिर पर घूम रही है। बादलीयह अकड़ छोड़ दे, तुम्हें सौत ने सिखा कर भेजा छिपा मत, देख धन्या का बुरा हाल हो रहा है। बादली, इसमें जरा भी संशय नही है।साजन के सब समाचार शीघ्र बता दे ।
छोड़ मरोड़, छिपा मती धण रो देख हवाल।सज-धज आवै सामनै चालै मधरी चाल ।बता बता ऐ बादली साजन रा सै हाल।। 22।।सैण-सनैसो बादळी सुणा-सुणा तत्काल् ।।23।।
यह अकड़ छोड़ दे, छिपा मत, देख धन्या का बुरा हाल हो रहा है। तू सज-धज कर सामने आती और धीमी-धीमी चाल चलती है । बादली, साजन के सब समाचार षिघ्र बता दे।का संदेशा तत्काल् सुना दे ।
सजधौळी रूई फैल सी, घुळ-धज आवै सामनै चालै मधरी चाल।घुळ भूरी होय ।सैण-सनैसो बरस घटा बण, बादळी सुणा-सुणा तत्काल्।। 23।।मुरधर कानी जोय ।।24।।
तु सजसफ़ेद रूई के फाये-धज कर सामने आती और धीमीसी तू घुल-धीमी चाल चलती है। घुल कर भूरी हो जाती है । बादली, साजन का संदेशा तत्काल् सुना दे।मरूधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो ।
धौळी रूई फैल सी, घुळजळहर ऊंचा आविया बोल रया जल-घुळ भूरी होय।काग ।बरस घटा बण, बादळी मुरधर कानी जोय।। 24।।देण बधाई मेह री रया कनैया भाग ।।25।।
सफेद रूई के फाऐ सी तु घुल-घुल कर भूरी हो जाती है। बादलीजलधर ऊँचे आ गए हैं, मरूधरा जल-काग बोल रहे हैं और मेह की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो।बधाई देने के लिये कन्हैया पक्षी भी दौड़ रहे हैं ।
जळहर ऊंचा आविया बोल रया जल-काग।आयी नेड़ी मिलण ने तीतरपंखी रेख ।देण बधाई मेह री रया कनैया भाग ।। 25 ।।हरखी सारी मुरधरा चांद-जलैरी देख ।।26।।
जलधर ऊंचे तीतरपंखी रेखा के रूप में मिलने के लिये तू समीप गये गई है, जलऔर चाँद-काग बोल रहे जलहरी को देख कर सारी मरूधरा हर्षित हो उठी है और मेह की बधाई देने के लिये कन्हैया पक्षी भी दौड़ रहे है।
आयी नेड़ी मिलण ने तीतरपंखी रेख।चरचर करती चिड़कल्यां करै रेत असनान ।हरखी सारी मुरधरा चांद-जलैरी देख।। 26।।तंबू सो अब ताणियों बादळयां असमान ।।27।।
तीतरपंखी रेखा के रूप में मिलने के लिये तु समीप आ गई है और चंादचहचहाती चिड़िया धूलि-जलहरी को देख स्नान कर सारी मरूधरा हर्षित हो उठी है।रही है । अब बादलियों ने आसमान में तंबू-सा तान लिया है ।
चरचर करती चिड़कल्यां करै रेत असनान।तंबू सो अब ताणियों दूर खितिज पर बादळयां असमान।। 27।।च्यारूं दिस में गाज ।जाणै कम्मर बांधली आभै वरसण आज ।।28।।
चहचहाती चिड़िया धूलिस्नान कर रही है। अब बादलियों ने आसमान में तंबु सा तान लिया है। दूर खितिज पर बादळयां च्यारूं दिस में गाज।जाणै कम्मर बांधली आभै वरसण आज ।। 28 ।। दूर क्षितिज पर बादलियां बादलियाँ है और चारों दिशाएं दिशाएँ गरज रही है, मानों आज आकाश ने बरसने के लिये कमर कस ली है।है ।
आभ अमूझी बादळी घरां अमूझी नार ।
धरां अमूझ्या धोरिया परदेसां भरतार ।। 29 ।। आकाश में बादली अमूझ रही है, घरों में स्त्रियां अमूझ रही है। धरा पर टीले अमूझ रहे है और परदेशों में पति अमूझ रहे है।।।29।।
गांव-गांव आकाश में बादळी सुणा सनेसो गाज।इंदर वूठण आवियो तूठण मूरधरआज।। 30।।बादली अमूझ रही है, घरों में स्त्रियाँ अमूझ रही है। धरा पर टीले अमूझ रहे है और परदेशों में पति अमूझ रहे है ।
बादली, गांव-गांव में गरज कर यह सदेंशा सुनादे कि आज मरूधरा को प्रसन्न करने के लिये इन्द्र बरसने आये है।बादळी सुणा सनेसो गाज ।इंदर वूठण आवियो तूठण मूरधरआज ।।30।।
बादली, गाँव-गाँव में गरज कर यह सदेंशा सुना दे कि आज मरूधरा को प्रसन्न करने के लिये इन्द्र बरसने आए हैं ।
</Poem>
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