भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दहर में नक़्शे-वफ़ा / ग़ालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
है यह वह लफ़्ज़ कि शर्मिन्दह-ए-मनी न हुआ

सब्ज़ह-ए-ख़त से तिरा काकुल-ए-सरकश न दबा
यह ज़ुमुर्रुद भी हरीफ़-ए-दम-ए-अफ़`ई न हुआ

मैं ने चाहा था कि अन्दोह-ए-वफ़ा से छूटूं
वह सितमगर मिरे मरने पह भी राज़ी न हुआ

दिल गुज़र-गाह-ए-ख़याल-ए-मय-ओ-साग़र ही सही
गर नफ़स जादह-ए-सर-मंज़िल-ए-तक़्वी न हुआ

हूँ तिरे व`दह न करने में भी राज़ी कि कभी
गोश मिन्नत-कश-ए-गुलबांग-ए-तसल्ली न हुआ

किस से महरूमी-ए-क़िस्मत की शिकायत कीजे
हम ने चाहा था कि मर जाएं सो वह भी न हुआ

मर गया सदमह-ए-यक-जुन्बिश-ए-लब से ग़ालिब
नातुवानी से हरीफ़-ए-दम-ए-`ईसा न हुआ