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"दान / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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और रूप क्या है मेरा, प्रतिबिंबित रूप तुम्हारा ही
 
और रूप क्या है मेरा, प्रतिबिंबित रूप तुम्हारा ही
 
मुझमें, मैं भी तो तुम हो, सुन्दरतम जो कुछ है मेरा
 
मुझमें, मैं भी तो तुम हो, सुन्दरतम जो कुछ है मेरा
मिला तुम्हीं से और असुन्दर जो, सुन्दर वह सारा ही  
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मिला तुम्हींसे और असुन्दर जो, सुन्दर वह सारा ही  
तुमको छूकर, आज तुम्हें क्यों इन प्रश्नों ने घेरा?
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तुमको छूकर, आज तुम्हें क्यों पर इन प्रश्नों ने घेरा?
  
 
क्या वे दान दिए अनजाने? भूल गयी हम-तुम हैं एक?
 
क्या वे दान दिए अनजाने? भूल गयी हम-तुम हैं एक?
 
तुम सरि-तट की छुईमुई-सी, विस्मत क्यों निज को ही देख?'
 
तुम सरि-तट की छुईमुई-सी, विस्मत क्यों निज को ही देख?'
 
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03:08, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


सीखी क्या निर्झर से कविता? मादकता ली फूलों से
कोकिल से स्वर, उष:अनिल से गति, वसंत से भाव अनूप
चुरा लिए तुमने? भोलापन यह क्या शिशु की भूलों से
पाया कवि, क्या मुग्ध प्रकृति से आकर्षण, तितली से रूप?

'देवि! तुम्हारे नयनों से यह कविता सीखी, अधरों से
मादकता ली, मधुर कंठ से स्वर, चरणों से गति का क्रम
पाए भाव तुम्हारे स्पंदित उर से, स्मिति की लहरों से
रँगे हुए मुख से भोलापन, तन से आकर्षण निरुपम.

और रूप क्या है मेरा, प्रतिबिंबित रूप तुम्हारा ही
मुझमें, मैं भी तो तुम हो, सुन्दरतम जो कुछ है मेरा
मिला तुम्हींसे और असुन्दर जो, सुन्दर वह सारा ही
तुमको छूकर, आज तुम्हें क्यों पर इन प्रश्नों ने घेरा?

क्या वे दान दिए अनजाने? भूल गयी हम-तुम हैं एक?
तुम सरि-तट की छुईमुई-सी, विस्मत क्यों निज को ही देख?'