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दान / गुलाब खंडेलवाल

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और रूप क्या है मेरा, प्रतिबिंबित रूप तुम्हारा ही
मुझमें, मैं भी तो तुम हो, सुन्दरतम जो कुछ है मेरा
मिला तुम्हीं से तुम्हींसे और असुन्दर जो, सुन्दर वह सारा ही तुमको छूकर, आज तुम्हें क्यों पर इन प्रश्नों ने घेरा?
क्या वे दान दिए अनजाने? भूल गयी हम-तुम हैं एक?
तुम सरि-तट की छुईमुई-सी, विस्मत क्यों निज को ही देख?'
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