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दिख पड़ी सामने सरयू निर्मल पुण्य-पाथ / द्वितीय खंड / गुलाब खंडेलवाल

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दिख पड़ी सामने सरयू निर्मल पुण्य-पाथ
तब कहा राम ने पुरवासी-दिशि जोड़ हाथ
'अब फिरें आप यों विकल न होंगे अवध-नाथ!
मैं लौटूंगा द्रुत, द्रुततर, द्रुततम बंधु साथ
मुनि का आदेश वहन कर
'खल-दमन, संत-जन-रक्षण-हित है प्रभुताई
आशिष दें, भूलूँ नहीं क्षात्र-व्रत मैं, भाई!
सेवा में ही दी मुक्ति मुझे तो दिखलाई
है ध्येय, पोंछ प्रति दृग के आँसू दुखदायी
निर्भय कर दूँ भव-अंतर
 
'"नर-तनु निष्फल पर-हित में नहीं लगाया जो
जीवन क्या है दुखियों के काम न आया जो!
विजयी, निज-पर की तोड़ सका दृढ माया जो
त्यागा जिसने संसार, उसी का पाया हो"
मैं यही सिखाने आया
'हो अभय, मुक्त जग, रहे न कोई विफल-काम
प्रतिजन मुझमें, प्रतिजन में मैं रम रहा राम
मैं धरती पर रचकर नूतन वैकुण्ठ-धाम
नर को नारायण का कैसे मिल सके नाम
वह मार्ग दिखाने आया'