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Kavita Kosh से
बन गई कस्बाई मेलों में फ़िल्मी गानों पर
डांस करने वाली लड़की
छुपाने में माहिर है
रंगीन लाइटों की लुकाछिपी लुका-छिपी में
शोहदों की सीटियों के कोरस में
फ़िल्मी गानों की धुनों पर
लट्टू की तरह नाचते हुए
अदाओं से दर्शकों को उन्मत्त करती है
जिसके इशारों की आंच आँच से
शो का तम्बू पिघल जाता है
इंसानियत के चेहरे पर उभरी
खरोचों की तरह
असमय झुर्रियां झुर्रियाँ उभर आई हैं उसकी मांमाँ
किसी छोटे गाँव में अपनी छोटी बेटियों
की परवरिश और खुद ख़ुद की दावा दवा के लिए
उसके भेजे मनीआर्डर की राह देखती रहती है
बेजान पत्थर में
और रात होने का इंतज़ार करती है
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