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"दिन के उजाले में डांस पार्टी वाली लड़की / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर

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जो गई थी मुंबई हीरोइन बनने
 
बन गई कस्बाई मेलों में फ़िल्मी गानों पर  
 
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डांस करने वाली लड़की  
 
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छुपाने में माहिर है  
 
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रंगीन लाइटों की लुकाछिपी में  
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रंगीन लाइटों की लुका-छिपी में  
 
शोहदों की सीटियों के कोरस में  
 
शोहदों की सीटियों के कोरस में  
 
फ़िल्मी गानों की धुनों पर  
 
फ़िल्मी गानों की धुनों पर  
 
लट्टू की तरह नाचते हुए  
 
लट्टू की तरह नाचते हुए  
 
अदाओं से दर्शकों को उन्मत्त करती है  
 
अदाओं से दर्शकों को उन्मत्त करती है  
जिसके इशारों की आंच से  
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जिसके इशारों की आँच से  
 
शो का तम्बू पिघल जाता है  
 
शो का तम्बू पिघल जाता है  
  
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इंसानियत के चेहरे पर उभरी  
 
इंसानियत के चेहरे पर उभरी  
 
खरोचों की तरह  
 
खरोचों की तरह  
असमय झुर्रियां उभर आई हैं  
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असमय झुर्रियाँ उभर आई हैं  
उसकी मां
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उसकी माँ
 
किसी छोटे गाँव में अपनी छोटी बेटियों  
 
किसी छोटे गाँव में अपनी छोटी बेटियों  
की परवरिश और खुद की दावा के लिए  
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की परवरिश और ख़ुद की दवा के लिए  
 
उसके भेजे मनीआर्डर की राह देखती रहती है  
 
उसके भेजे मनीआर्डर की राह देखती रहती है  
  
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बेजान पत्थर में  
 
बेजान पत्थर में  
 
और रात होने का इंतज़ार करती है  
 
और रात होने का इंतज़ार करती है  
जिंदा होने के लिए  
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ज़िंदा होने के लिए  
 
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11:10, 29 मार्च 2010 के समय का अवतरण

जो गई थी मुंबई हीरोइन बनने
बन गई कस्बाई मेलों में फ़िल्मी गानों पर
डांस करने वाली लड़की
जो सर्कस के जोकर की तरह
चेहरे पर बहुत सारा मेकअप लगाकर
हर उदासी को
छुपाने में माहिर है

रंगीन लाइटों की लुका-छिपी में
शोहदों की सीटियों के कोरस में
फ़िल्मी गानों की धुनों पर
लट्टू की तरह नाचते हुए
अदाओं से दर्शकों को उन्मत्त करती है
जिसके इशारों की आँच से
शो का तम्बू पिघल जाता है

वही लड़की दिन के उजाले में
साधारण उदास लड़की बन जाती है
उसके चेहरे पर
इंसानियत के चेहरे पर उभरी
खरोचों की तरह
असमय झुर्रियाँ उभर आई हैं
उसकी माँ
किसी छोटे गाँव में अपनी छोटी बेटियों
की परवरिश और ख़ुद की दवा के लिए
उसके भेजे मनीआर्डर की राह देखती रहती है

दिन के उजाले में
डांस पार्टी वाली लड़की
बदल जाती है
बेजान पत्थर में
और रात होने का इंतज़ार करती है
ज़िंदा होने के लिए