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"दिन जिन्दगी के यों भी गुज़र जायँ तो अच्छा! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
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दिन जिन्दगी के यों भी गुज़र जायँ तो अच्छा
 
हम इस खुशी के दौर में मर जायँ तो अच्छा
 
 
यों तो न रुक सकी कभी कूची तेरा, रंगसाज!
 
फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा
 
 
मज़मा उठा-उठा है, झुकी आ रही है शाम
 
मेले से अब हम लौट के घर जायँ तो अच्छा
 
 
चरणों में बिछी उनके पँखुरियाँ गुलाब की
 
कुछ आख़िरी घड़ी में सँवर जायँ तो अच्छा
 
<poem>
 

01:55, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण