भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल्ली में भी पेड़ / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:36, 22 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |अनुवादक= |संग्रह=नहा कर नह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दिल्ली में भी पेड़े हैं।
पेड़ के नीचे लेट जाऊँ तो बादल भी दिखेंगे।

कोई चाकू लेकर डराता है तो डराता रहे,
मैं पेड़ के नीचे की ज़मीं पर उतना ही लेटा रहूँका
जितना आदिवासी जंगलों में बसे हैं।

मेरे बादल मेरे साथ मेरे विक्षोभ में शामिल रहेंगे,
आ जाए पुलिस अगर आती है तो।

जिसे नहीं दिखता आदमी,
उसे पेड़ और बादल क्या दिखेंगे।