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दिल ए आदम को वहशत है ज़मीं से / ज़िया फ़तेहाबादी

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दिल ए आदम को वहशत है ज़मीं से
हवा आई कोई ख़ुल्द ए बरीं से
जो निकली थी दिल ए अन्दोहगीं से
जली बिजली उस आह ए आतिशीं से
हुई तैयारियाँ दार ओ रसन की
अनालहक़ की सदा आई कहीं से
जहां से क़हक़हे उठे थे शायद
मेरे आँसू भी आए हैं वहीँ से
चली दुनिया में रस्म ए सजदारेज़ी
कुछ उनके दर से कुछ मेरी जबीं से
यकीं के पाँव में लग़ज़ीश न आए
बदल जाती हैं तक़दीरें यकीं से
मुहब्बत की " ज़िया " सरशारियाँ हैं
नहीं मुझ को ग़रज़ दुनिया ओ दीं से