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"दिल का कचरा / हिमानी" के अवतरणों में अंतर

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बेशर्म ख्वाब
 
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बेअदब ख्वाहिशें
मैं लिखना चाहती हूं
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बगावती ख्याल
कुछ ऐसे लेख
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खाली से इस दिल में
जो जुड़े हों
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कितना कचरा भरा है
देश, दुनिया और समाज से
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हकीकी से रुबरु
 
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हुक्म की तामील करता
कुछ ऐसी कविताएं
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हदों में रहता हर शख्स
जिनमें न हो बारिश, फूल और भंवरे
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इस कचरे से दूर
जिनमें हो भूख, समानता, संघर्ष और क्रांति की बातें
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कितना साफ सुथरा दिखता है
 
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आदतों में शुमार अदब
आज भी
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तहजीब से लदा
जब मैं लिख रही हूं कुछ
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तरकीबों से अलहदा
तो चाहती हूं
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ये हुस्न मुझे मगर
कि लिखूं
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नागंवार लगता है
कोरोना संकट से जूझ रहे लोगों के हालातों
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अब चाहती हूं इस जिस्म में भी नूर हो
और इंडिया और भारत के बीच फैले
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शर्मों हया की इस चाशनी में
तमाम विरोधाभासों की कहानी
+
शरारत का तड़का
 
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तवे सी रोटी के सुरूर में  
मैं चाहती हूं कि लिखूं
+
तंदूरी नान सा गुरूर हो
ध्वस्त होते उन तमाम जन आंदोलनों के बारें में कुछ
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दिल में थोड़ा कचरा होना भी  
जो एक नया चोला पहनकर
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जीने के लिए जरूरी है।
छेड़े गए थे
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मगर जिनकी पटकथा
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नेताओं के चरित्र पर ही आधारित थी
+
और जिन्होंने बिल्कुल
+
नेताओं की तरह वादों को तोड़ने के लिए ही भरा था
+
बड़ी-बड़ी बातों का दम
+
 
+
मैं लिखना चाहती हूं गरीबी रेखा के उन आंकड़ों के बारे में  
+
जिन पर हमेशा संसद, टीवी चैनलों और अखबारों में बहस होती है
+
और हमेशा ये गिनती अधूरी रह जाती है कि कितने लोग
+
यूं अखबार बिछाकर और ओढ़कर ही सो रहे हैं फुटपाथों पर
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और भी न जाने कितनी खबरें हैं, जिनसे हर रोज गुजरते हुए
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मैं उन पर सहमती हूं, सोचती हूं, उन्हें समझती हूं
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और कुछ लिखना चाहती हूं।
+
 
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लेकिन
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मैं
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बस... लिखती हूं
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और लिखती जाती हूं
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तुम्हें,
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और
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तुम्हारे इन्तजार को।
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19:34, 23 मई 2020 के समय का अवतरण

 बेशर्म ख्वाब
बेअदब ख्वाहिशें
बगावती ख्याल
खाली से इस दिल में
कितना कचरा भरा है
हकीकी से रुबरु
हुक्म की तामील करता
हदों में रहता हर शख्स
इस कचरे से दूर
कितना साफ सुथरा दिखता है
आदतों में शुमार अदब
तहजीब से लदा
तरकीबों से अलहदा
ये हुस्न मुझे मगर
नागंवार लगता है
अब चाहती हूं इस जिस्म में भी नूर हो
शर्मों हया की इस चाशनी में
शरारत का तड़का
तवे सी रोटी के सुरूर में
तंदूरी नान सा गुरूर हो
दिल में थोड़ा कचरा होना भी
जीने के लिए जरूरी है।