भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल गया इज़्तिराब बाक़ी है / रवि सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल गया इज़्तिराब<ref>बेचैनी (restlessness)</ref> बाक़ी है 
गोया क़िस्सा जनाब बाक़ी है

अर्ज़े-उल्फ़त<ref>प्रेम निवेदन (propositioning love)</ref> पे जश्न हो जाए
गरचे उनका जवाब बाक़ी है 

ख़ाक रक़्सां<ref>नाचता हुआ (dancing)</ref> है इस बियाबाँ में 
चश्मे-बातिन<ref>अन्दरूनी आँख (inner eye)</ref> सराब<ref>मरीचिका (mirage)</ref> बाक़ी है

मेरी आँखों के जागने पे न जा
मेरी आँखों में ख़्वाब बाक़ी है 

फ़िक्र उनको है रोज़े-महशर<ref>क़यामत (day of final reckoning), आख़िरी हिसाब-किताब का दिन</ref> की 
मुझको ख़ुद से हिसाब बाक़ी है 

शब्दार्थ
<references/>