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दिल में जो बात है बताते नहीं / अब्दुल हमीद
Kavita Kosh से
दिल में जो बात है बताते नहीं
दूर तक हम कहीं भी जाते नहीं
अक्स कुछ देर तक नहीं रुकते
बोझ ये आईने उठाते नहीं
ये नसीहत भी लोग करने लगे
इस तरह मुफ़्त दिल गँवाते नहीं
दूर बस्ती पे है धुवाँ कब से
क्या जला है जिसे बुझाते नहीं
छोड़ देते हैं इक शरर बे-नाम
आग लग जाती है लगाते नहीं
भूल जाना भी अब नहीं आसाँ
वरना ये ख़िफ़्फ़तें उठाते नहीं
आप अपने में जलते बुझते हैं
ये तमाशा कहीं दिखाते नहीं