भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल में जो मुहब्बत की रौशनी नहीं होती / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:55, 26 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=प्यार का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल में जो मुहब्बत की रौशनी नहीं होती
इतनी ख़ूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती

दोस्त पे करम करना और हिसाब भी रखना
कारोबार होता है दोस्ती नहीं होती

ख़ुद चिराग़ बन के जल वक़्त के अँधेरे में
भीख के उजालों से रौशनी नहीं होती

शायरी है सरमाया ख़ुशनसीब लोगों का
बाँस की हर इक टहनी बाँसुरी नहीं होती

खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार-जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती