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"दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर

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मैं उसको देखता रहा पत्थर बना हुआ
 
मैं उसको देखता रहा पत्थर बना हुआ
  
जब आँसुओं में बह गए यादों के सब नक़ूश
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जब आँसुओं में बह गए यादों के सारे नक्श
 
आँखों में कैसे रह गया मंज़र बना हुआ
 
आँखों में कैसे रह गया मंज़र बना हुआ
  
लहरो ! बताओ तुमने उसे क्यूँ मिटा दिया
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लहरो!बताओ तुमने उसे क्यूँ मिटा दिया
 
इक ख़्वाब का महल था यहाँ पर बना हुआ
 
इक ख़्वाब का महल था यहाँ पर बना हुआ
  
 
वो क्या था और तुमने उसे क्या बना दिया
 
वो क्या था और तुमने उसे क्या बना दिया
 
इतरा रहा है क़तरा समंदर बना हुआ
 
इतरा रहा है क़तरा समंदर बना हुआ

16:11, 17 सितम्बर 2010 का अवतरण

दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ मिट्टी में मिल न जाए कहीं घर बना हुआ

इक ’लफ़्ज़’ बेवफ़ा कहा उसने फिर उसके बाद मैं उसको देखता रहा पत्थर बना हुआ

जब आँसुओं में बह गए यादों के सारे नक्श आँखों में कैसे रह गया मंज़र बना हुआ

लहरो!बताओ तुमने उसे क्यूँ मिटा दिया इक ख़्वाब का महल था यहाँ पर बना हुआ

वो क्या था और तुमने उसे क्या बना दिया इतरा रहा है क़तरा समंदर बना हुआ