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दीन दशा देखि ब्रज-बालनि की उद्धव कौ,
::गरिगौ गुमान ज्ञान गौरव गुठाने से ।
कहै रतनाकर न आये मुख बैन नैन,
::नीर भरि ल्याए भए सकुचि सिहाने से ॥
सूखे से स्रमे से सकबके से सके से थके,
::भूले से भ्रमे से भभरे से भकुवाने से,
हौले से हले से हूल-हूले से हिये मैं हाय,
::हारे से हरे से रहे हेरत हिराने से ॥28॥
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