भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दीपावली पर पाँच मुक्तक / शाहिद मिर्ज़ा शाहिद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शाहिद मिर्ज़ा शाहिद |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> '''मर्य…)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शाहिद मिर्ज़ा शाहिद  
 
|रचनाकार=शाहिद मिर्ज़ा शाहिद  
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
}}
+
}}{{Template:KKAnthologyDiwali}}
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
{{KKCatGhazal‎}}‎
 
<poem>
 
<poem>

18:11, 17 मार्च 2011 के समय का अवतरण

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
छोड़कर चल दिए रस्ते सभी फूलों वाले
चुन लिए अपने लिए पथ भी बबूलों वाले
उनके किरदार की अज़मत है निराली शाहिद
दोस्त तो दोस्त, हैं दुश्मन भी उसूलों वाले

परतवे-अर्श<ref>आकाश का प्रतिबिंब</ref>
जगमगाते हुए दीपों के इशारे देखो
आज हर सिम्त नज़र डालो, नज़ारे देखो
परतवे-अर्श का मख़सूस ये मंज़र शाहिद
जैसे उतरे हों फ़लक़ से ये सितारे देखो

रोशनी और ख़ुशबू
दीपमाला में मुसर्रत की खनक शामिल है
दीप की लौ में खिले गुल की चमक शामिल है
जश्न में डूबी बहारों का ये तोहफ़ा शाहिद
जगमगाहट में भी फूलों की महक शामिल है

क़ुदरत का पैग़ाम
हमको क़ुदरत भी ये पैग़ाम दिए जाती है
जश्न मिल-जुल के मनाने का सबक लाती है
अब तो त्यौहार भी तन्हा नहीं आते शाहिद
साथ दीवाली भी अब ईद लिए आती है

शुभ दीपावली
आओ अंधकार मिटाने का हुनर सीखें हम
कि वजूद अपना बनाने का हुनर सीखें हम
रोशनी और बढ़े, और उजाला फैले
दीप से दीप जलाने का हुनर सीखें हम

शब्दार्थ
<references/>