भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दीपावली मंगलमय हो / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
दीप शिखा की लौ कहती है, व्यथा कथा हर घर रहती है,<br>
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=लावण्या शाह
 +
}} दीप शिखा की लौ कहती है, व्यथा कथा हर घर रहती है,<br>
 
कभी छिपी तो कभी मुखर बन, अश्रु हास बन बन बहती है <br>
 
कभी छिपी तो कभी मुखर बन, अश्रु हास बन बन बहती है <br>
 
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है ..<br>
 
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है ..<br>

23:17, 13 अगस्त 2008 का अवतरण

दीप शिखा की लौ कहती है, व्यथा कथा हर घर रहती है,

कभी छिपी तो कभी मुखर बन, अश्रु हास बन बन बहती है
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है ..
बिछुडे स्वजन की याद कभी, निर्धन की लालसा ज्योँ थकी थकी,
हारी ममता की आँखोँ मेँ नमी, बन कर, बह कर, चुप सी रहती है,
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है !
नत मस्तक, मैँ दिवला, बार नमूँ
आरती, माँ, महालक्ष्मी मैँ तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,
दुखियोँ को सुख दो, यह बिनती करूँ,
माँ, देक्ग, दिया, अब, प्रज्वलित कर दूँ !
दीपावली आई फिर आँगन, बन्दनवार, रँगोली रची सुहावन !
किलकारी से गूँजा रे प्राँगन, मिष्ठान्न अन्न धृत मेवा मन भावन !
देख सखी, यहाँ फूलझडी मुस्कावन !
जीवन बीता जाता ऋउतुओँ के सँग सँग,
हो सबको, दीपावली का अभिनँदन !
नव -वर्ष की बधई, हो, नित नव -रस !