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दुख का परबत जब भी मेरी राह में लाया गया / विजय 'अरुण'
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दुख का परबत जब भी मेरी राह में लाया गया
देखते ही देखते उस पार मैं पाया गया।
भेज कर न्योता दुखों को सुख मुझे मिलता है मित्र!
लो वह दुख आया, वह दुख आया, वह दुख आया, गया!
सुख का भी सिक्का वही और दुख का भी सिक्का वही
बस इन्ही चित पट को ले कर यह है ढलवाया गया।
दुख की निस्बत सुख बहुत ही कम है इस संसार में
हो महाभारत कि रामायण, यही पाया गया।
धन्य ऐ मेरे 'अरुण' ! तू क्या निराला गीत है
सुख में भी गाया गया और दुख में भी गाया गया।