भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया ने जब डराया तो डरने में / अब्दुल्लाह 'जावेद'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया ने जब डराया तो डरने में लग गया
दिल फिर भी प्यार आप से करने में लग गया

शायद कहीं से आप की ख़ुशबू पहुँच गई
माहौल जान ओ दिल का सँवरने में लग गया

इक नक़्श मौज-ए-आब से बरहम हुआ तो क्या
इक नक़्श ज़ेर-ए-आब उभरने में लग गया

‘जावेद’ निज़्द-ए-आब-ए-रवाँ कह गया फ़क़ीर
दरिया में जो गया वो गुज़रने में लग गया