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"दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार<sup>1</sup> नहीं हूँ
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बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ
  
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ<br>
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ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त<sup>2</sup> की लज़्ज़त<sup>3</sup> नहीं बाक़ी
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ<br><br>
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हर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ
  
तलबगार= इच्छुक, चाहने वाला<br>
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इस ख़ाना-ए-हस्त<sup>4</sup> से गुज़र जाऊँगा बेलौस<sup>5</sup>
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साया हूँ फ़क़्त<sup>6</sup>, नक़्श<sup>7</sup> बेदीवार नहीं हूँ
  
ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी<br>
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अफ़सुर्दा<sup>8</sup> हूँ इबारत<sup>9</sup> से, दवा की नहीं हाजित<sup>10</sup>
हर चांद की हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ <br><br>
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गम़ का मुझे ये जो’फ़<sup>11</sup> है, बीमार नहीं हूँ
  
ज़ीस्त= जीवन; लज़्ज़त= स्वाद<br>
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वो गुल<sup>12</sup> हूँ ख़िज़ां<sup>13</sup> ने जिसे बरबाद किया है
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उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार<sup>14</sup> नहीं हूँ
  
इस ख़ाना-ए-हस्त से गुज़र जाऊंगा बेलौस<br>
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यारब मुझे महफ़ूज़<sup>15</sup> रख उस बुत के सितम से
साया हूँ फ़क़्त, नक़्श बेदीवार नहीं हूँ<br><br>
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मैं उस की इनायत<sup>16</sup> का तलबगार<sup>17</sup> नहीं हूँ
  
ख़ाना-ए-हस्त= अस्तित्व का घर; बेलौस= लांछन के बिना<br>
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अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़<sup>18</sup> की कुछ हद नहीं “अकबर”
फ़क़्त= केवल; नक़्श= चिन्ह, चित्र<br><br>
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क़ाफ़िर<sup>19</sup> के मुक़ाबिल में भी दींदार<sup>20</sup> नहीं हूँ
 
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अफ़सुर्दा हूँ इबारत से, दवा की नहीं हाजित<br>
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गम़ का मुझे ये जो’फ़ है, बीमार नहीं हूँ <br><br>
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''' शब्दार्थ:
 
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1. तलबगार= इच्छुक, चाहने वाला;
अफ़सुर्दा= निराश; इबारत= शब्द, लेख; हाजित(हाजत)= आवश्यकता<br>
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2. ज़ीस्त= जीवन;         
जो’फ़(ज़ौफ़)= कमजोरी,क्षीणता<br><br>
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3. लज़्ज़त= स्वाद;                       
 
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4. ख़ाना-ए-हस्त= अस्तित्व का घर;        
वो गुल हूँ ख़िज़ां ने जिसे बरबाद किया है<br>
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5. बेलौस= लांछन के बिना;                 
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ <br><br>
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6. फ़क़्त= केवल;                      
 
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7. नक़्श= चिन्ह, चित्र;                   
गुल=फूल; ख़िज़ां= पतझड़; ख़ार= कांटा<br><br>
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8. अफ़सुर्दा= निराश;                    
 
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9. इबारत= शब्द, लेख;                  
यारब मुझे महफ़ूस रख उस बुत के सितम से<br>
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10. हाजित(हाजत)= आवश्यकता;
मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ<br><br>
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11. जो’फ़(ज़ौफ़)= कमजोरी, क्षीणता;
 
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12. गुल= फूल;
महफ़ूस= सुरक्षित; इनायत= कृपा; तलबगार= इच्छुक<br><br>
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13. ख़िज़ां= पतझड़;
 
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14. ख़ार= कांटा;
अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”<br>
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15. महफ़ूज़= सुरक्षित;
काफ़िर के मुक़ाबिल में भी दींदार नहीं हूँ <br><br>
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16. इनायत= कृपा;
 
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17. तलबगार= इच्छुक;
अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़=निराशा और क्षीणता;काफ़िर=नास्तिक; दींदार=आस्तिक,धर्म का पालन करने वाला
+
18. अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़= निराशा और क्षीणता;
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19. क़ाफ़िर= नास्तिक;
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20. दींदार=आस्तिक,धर्म का पालन करने वाला।

02:42, 3 मई 2009 के समय का अवतरण



दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार1 नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ

ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त2 की लज़्ज़त3 नहीं बाक़ी
हर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ

इस ख़ाना-ए-हस्त4 से गुज़र जाऊँगा बेलौस5
साया हूँ फ़क़्त6, नक़्श7 बेदीवार नहीं हूँ

अफ़सुर्दा8 हूँ इबारत9 से, दवा की नहीं हाजित10
गम़ का मुझे ये जो’फ़11 है, बीमार नहीं हूँ

वो गुल12 हूँ ख़िज़ां13 ने जिसे बरबाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार14 नहीं हूँ

यारब मुझे महफ़ूज़15 रख उस बुत के सितम से
मैं उस की इनायत16 का तलबगार17 नहीं हूँ

अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़18 की कुछ हद नहीं “अकबर”
क़ाफ़िर19 के मुक़ाबिल में भी दींदार20 नहीं हूँ


शब्दार्थ: 1. तलबगार= इच्छुक, चाहने वाला; 2. ज़ीस्त= जीवन; 3. लज़्ज़त= स्वाद; 4. ख़ाना-ए-हस्त= अस्तित्व का घर; 5. बेलौस= लांछन के बिना; 6. फ़क़्त= केवल; 7. नक़्श= चिन्ह, चित्र; 8. अफ़सुर्दा= निराश; 9. इबारत= शब्द, लेख; 10. हाजित(हाजत)= आवश्यकता; 11. जो’फ़(ज़ौफ़)= कमजोरी, क्षीणता; 12. गुल= फूल; 13. ख़िज़ां= पतझड़; 14. ख़ार= कांटा; 15. महफ़ूज़= सुरक्षित; 16. इनायत= कृपा; 17. तलबगार= इच्छुक; 18. अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़= निराशा और क्षीणता; 19. क़ाफ़िर= नास्तिक; 20. दींदार=आस्तिक,धर्म का पालन करने वाला।