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दुनिया समझ से बाहर मसले नहीं पकड़ में / रवि सिन्हा

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दुनिया समझ से बाहर मसले नहीं पकड़ में
अपना भी जोड़िए कुछ क़ुदरत से आए धड़ में

हाँ ठीक है ये धरती काँधे चढ़ी तुम्हारे
ग़ाफ़िल ग़ुलाम क्यूँ हो ख़्यालात क्यूँ जकड़ में

तन्क़ीद<ref>आलोचना (criticism)</ref> के वो आली<ref>सर्वश्रेष्ठ (the best)</ref>, फ़ाज़िल<ref>अतिरिक्त (extra)</ref> कमाल ये भी
ख़ुद क्या मजाल आवें तन्क़ीद की पकड़ में

लाए चुरा के आतिश<ref>आग (fire)</ref> औ ज़र<ref>सोना, दौलत (gold, wealth)</ref> से ढँक दिया है
सूराख़ भी तो होगा उस रौशनी के गढ़ में

तारीकिओं<ref>अन्धेरापन (darkness)</ref> की गुप-चुप कुछ है तो आँधियों से
गोया चराग़ ही है कुल मुआ'मले की जड़ में

शब्दार्थ
<references/>