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"दूदे-तन्हाई के उस पार क्या है/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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दूदे-तन्हाई के उस पार क्या है
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वह ख़ुद है या उसके हुस्न की ज़या है
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बेवजह किसी की याद यूँ सताती नहीं
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बेवजह किसी की याद सताती नहीं
मेरे दिल ने तुझको पसन्द किया है
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मेरे दिल ने तुझे ही पसन्द किया है
  
फ़ैज़ क्या सोचें राहे-मोहब्बत में
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क़ैस न हो हर आशिक़ इतनी दुआ है
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सहाब बरसें हैं एक मुद्दत के बाद
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यह मेरा नसीब है या उसकी वफ़ा है
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ये मेरा नसीब है या उसकी वफ़ा है
  
हिचकियाँ आये हुए मुझको बरस हुए
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हिचकियाँ आये हुए मुझे बरस हुए
क्या तुमने कभी मुझे याद किया है
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क्या तुमने कभी मुझको याद किया है
  
 
तेरे जाने के बाद दिल में कुछ न रहा
 
तेरे जाने के बाद दिल में कुछ न रहा
वह ढूँढ़ते हैं जो मुझमें तेरा नक्शे-पा है
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अब सबा हर-सू चुपचाप बहती है
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उसकी ख़ामोशी यह कहती है तू ख़फ़ा है
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ख़ुश रहो कि हम जाते हैं तेरी दुनिया से
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ख़ुश रहो कि जाते हैं तेरी दुनिया से
ग़ैर से निबाह में अब तेरी दुनिया है
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कि ग़ैर से निबाह में तेरी दुनिया है
  
जो कहता था ‘नज़र’ इश्क़ से बचना
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‘नज़र’ जो कहता था इश्क़ इक बला है
वह ख़ुद ही आज उसमें मुब्तिला है
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वो ख़ुद भी आज इसी में मुब्तिला<ref>फँसा हुआ, जकड़ा हुआ (embroiled)</ref> है
  
'''शब्दार्थ:
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''दूदे-तन्हाई = तन्हाई का धुँधलका (haze of solitude), ज़या = रोशनी (light), फ़ैज़ = फ़ायदा (profit),
+
''क़ैस = मजनूँ का वास्तविक नाम, सहाब = बादल (cloud), नक्शे-पा = क़दमों के निशान (footprint),
+
''सबा = सुबह की हवा, मुब्तिला = फँसा हुआ, जकड़ा हुआ (embroiled)
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02:49, 10 अप्रैल 2011 का अवतरण

लेखन वर्ष: २००६-२००७/२०११

दूदे-तन्हाई<ref>तन्हाई का धुँधलका (haze of solitude)</ref> के उस पार क्या है
वो ख़ुद है या उसके हुस्न की ज़या<ref>रोशनी (light)</ref> है

बेवजह किसी की याद सताती नहीं
मेरे दिल ने तुझे ही पसन्द किया है

फ़ैज़<ref>फ़ायदा (profit)</ref> क्या सोचें राहे-मोहब्बत में
क़ैस<ref>मजनूँ का वास्तविक नाम</ref> न हो हर आशिक़ इतनी दुआ है

सहाब<ref> बादल (cloud)</ref> बरसें हैं एक मुद्दत के बाद
ये मेरा नसीब है या उसकी वफ़ा है

हिचकियाँ आये हुए मुझे बरस हुए
क्या तुमने कभी मुझको याद किया है

तेरे जाने के बाद दिल में कुछ न रहा
बस बाक़ी दिल पे तेरा नक्शे-पा<ref>पैरों के चिह्न (footprint)</ref> है

अब सबा<ref>सुबह की हवा (breeze)</ref> चार-सू चुपचाप बहती है
ये ख़ामोशी कहती है तू ख़फ़ा है

ख़ुश रहो कि जाते हैं तेरी दुनिया से
कि ग़ैर से निबाह में तेरी दुनिया है

‘नज़र’ जो कहता था इश्क़ इक बला है
वो ख़ुद भी आज इसी में मुब्तिला<ref>फँसा हुआ, जकड़ा हुआ (embroiled)</ref> है

शब्दार्थ
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